Skip to main content

क्यूँ हो गए फेल 70 % छात्र

The examinee is better than the examiner. ऐसा कभी लिखा गया था बिहार के एक नौजवान की कॉपी में. आज साइंस स्ट्रीम के 70 % छात्र फेल घोषित हुए इंटर परीक्षा के रिजल्ट में ! शिक्षा की अवस्था का यह न्यूनतम स्थान है या  अभी इसे और नीचे गिरना है ? आईये इसकी पड़ताल करते हैं फिजिक्स के एक नामचीन शिक्षक  ई ० एस ० मिश्रा के साथ.  इस तरह के आश्चर्यजनक रिजल्ट के पीछे क्या क्या कारण हो सकते हैं यह पूछने पर श्री मिश्रा ने निम्न कारण बताये:


  • लक्ष्य की कमी :
आज के समय की विडम्बना है कि छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को ही सही तरीके से नहीं पता कि पढाई करने से क्या मिलेगा. पढाई आज के जमाने में एक फैशन है. छात्रों के सामने एक स्पस्ट लक्ष्य नहीं है. कई बार मैं छात्रों से पूछता हूँ कि आपने इंटरमीडिएट में साइंस विषय क्यों लिया तो बहुत मजेदार उत्तर मिलते हैं. मसलन, किसी ने साइंस इसलिए लिया कि वो बैंकिंग की परीक्षा पास कर सके तो किसी ने साइंस इसलिए लिया कि वह एसएससी के सी जी एल की परीक्षा पास कर सके और कुछ ने तो इसलिए लिया कि भैया ने कहा और न जाने क्या क्या. ये सारे उत्तर निश्चित रूप से दिशाहीनता को दर्शाते हैं
 यद्यपि यह जमाना सूचनाओं का ज़माना है और सूचनाएं इंटरनेट आदि माध्यम से  आसानी से उपलब्ध हैं. परन्तु सूचनाओं की बाढ़ में गन्दी सूचनाओं के मध्य अच्छी सूचनाएं लगभग अदृश्य ही हैं. और लक्ष्य के आभाव में ये चाहत ही नहीं उपजती कि इन सूचनाओं का उपयोग किया जा सके. 

  • ध्वस्त शिक्षा तंत्र :
सरकारी शिक्षा तंत्र तो का तो अवशेष मात्र ही नजर आता है. ना तो ढंग के इंफ्रास्ट्रक्चर हैं , ना ही ढंग के शिक्षक हैं. सारे अर्धशिक्षित एवं नकारा लोगों को कॉन्ट्रैक्ट पर शिक्षक बना दिया गया है. जिन्होंने खुद अपनी डिग्री चोरी और पैरवी से हासिल की हो उनसे क्या शिक्षा मिलेगी यह सहज ही समझा जा सकता है. कुछ जगहों पर जैसे पटना यूनिवर्सिटी में तो इस नाम पर इंटर की पढाई बंद कर दी गयी कि इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाया जायेगा. न तो यह सेंट्रल यूनिवर्सिटी बना और ना ही उन मेधावी छात्रों के काम आ सका जो यहाँ से लाभान्वित हो सकते थे. उलटे मेधावी छात्र पलायन के लिए मजबूर हो गए. वे  दुसरे शहर जैसे कोटा आदि जगहों पर चले और अपना बोर्ड बदल लिया. 

  • बोर्ड परिवर्तन :
परीक्षा में लगातार गलत मूल्यांकन, गलत परिणाम , चोरी और पैरवी की घटना से दुखी कई छात्रों ने मैट्रिक के बाद या उस से कुछ पहले से ही बिहार बोर्ड को छोड़कर सीबीएसई बोर्ड का दामन थाम लिया, अब इस बोर्ड में ज्यादातर ऐसे छात्र रह गए जो आर्थिक कारणों से सीबीएसई बोर्ड की पढाई करने में सक्षम नहीं थे. स्वाभाविक है परिणाम को ख़राब होना ही था. 

  • परीक्षा का गिरता स्तर :
छात्रों को मानसिक दवाब से बचाने के नाम पर लगातार परीक्षा के सिस्टम से छेड़खानी की जा रही है. परीक्षा को लगातार आसान बनाया जा रहा है. और तो और कुछ परीक्षाओं को तो समाप्त ही कर दिया गया है. इसके पीछे राजनितिक मंशा है कि नए छात्रों में तार्किक और विश्लेषण की क्षमता का विकास नहीं हो सके और उन्हें जाति, धर्म आदि के नाम पर लगातार मूर्ख बनाया जा सके. परिणाम स्वरुप छात्र अपने आप को परीक्षा के काबिल नहीं बना पा रहे. ऐसे में परीक्षा में चोरी और पैरवी पर यदि थोड़ा सा भी अंकुश लग गया तो ये कागजी शेर ढेर हो जा रहे हैं. 

  • इंटरनेट का फैलता प्लेग :
इंटरनेट सूचनाओं को बहुत जल्दी और आसानी से भेजने का माध्यम है. इस माध्यम का दुरूपयोग समाज  में कतिपय शिक्षकों और संस्थाओं के द्वारा किया जा रहा है. कुछ निजी कोचिंग संस्थान अपने यहाँ यह लोभ देकर छात्रों का नामांकन ले रहे है कि ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन का आंसर परीक्षा भवन में व्हाट्स ऍप के जरिये भेज देंगे. अभी हाल में नीट जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा में कई लोगों की गिरफ्तारी इस योजना की पुस्टि करती है. छात्र इस भ्रम में पढाई नहीं करते कि पास होने लायक आंसर तो मोबाइल पर आ ही जायेगा. इस तंत्र पर थोड़ी सी रोक लगी तो अत्यधिक संख्या में छात्रों का परिणाम खराब हुआ. 
  • आर्थिक समृद्धि :
समाज में बिना ज्ञान के आयी आर्थिक समृद्धि भी ऐसे खराब रिजल्ट का एक कारण है. अपने बच्चों के प्रति धृतराष्ट्र जैसा मोह भी खराब रिजल्ट का कारण है. बच्चों को समय से पहले मोबाइल आदि जैसे उपकरण देना उन्हें बिगाड़ने का काम ही करता है. वे पढ़ने से ज्यादा अश्लील वेबसाइटों पर अपना समय नष्ट करते है. साथ ही खराब परिणाम होने पर कहा जाता है कि रिजल्ट तो कागज़ का टुकड़ा है खराब हुआ तो कोई बात नहीं पर बच्चे तो दिल का टुकड़ा हैं उन्हें खराब नहीं होने देना है. पैसों के दम पर इंजीनियरिंग , मेडिकल , मैनेजमेंट  आदि कॉलेजों में एडमिशन करा देने का वादा किया जाता है. यह आर्थिक समृद्धि का एक नकारात्मक परिणाम है जो आज इतना भयावह नजर आ रहा है. 
  • निष्कर्ष :
उपर्युक्त कारण की जड़ में राजनितिक साजिश है. अपने निहित स्वार्थवश शासकों ने शिक्षा व्यवस्था को नीचे की इस सीमा तक पहुंचा दिया है. जब तक सामाजिक क्रांति ऐसे शासकों को सोचने के लिए मजबूर नहीं करेगी तब तक ऐसी व्यवस्था दिखाई देती रहेगी. 
आपके कमैंट्स , अच्छे या बुरे , आमंत्रित हैं. आप इस बहस को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें. 

Comments

  1. Rajneeti kai beech hum achchhee education khojenge ...... To kaha se milega..... Pehle 60-40 ka khel ab 70% Phel........ Hum kaha khade hai wo khud hame bhi pta nahi........

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thank you so much for your reply. Kahin na kahin se to aawaj uthani hogi.

      Delete
  2. Aaj padhai ek fashion ho gya hai ur main sabse bra doshi guardian ko maanta hoon bachhe jo bolte hai wo maan lete hai dekhne bhi nhi naate ki beta kha padh rha hai natija aapke saamne hai meri baat se kinhi ko aapti hogi to please comment jaroor kiniyega

    ReplyDelete
  3. Need to change Education system of Bihar !
    We need to provide more and more resources so students can aware about technology and really know about what they have to do in future.

    There might be somehow problem of Government teachers,they just worried about money not teaching.
    I can't blame anyone
    Because till that time I didn't do any good think for our region .

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanx for comment. We have to do something for our mother land.

      Delete
  4. इस रिजल्ट को बिहार की शिक्षण व्यवस्था में सुधार की ओर पहला कदम बनाया जाना चाहिए. महाराष्ट्र का रास्ता अपनाते हुए अब उन स्कूलों-कालेजों और उनके शिक्षकों पर कार्रवाई शुरू करनी चाहिए, जिन-जिन के रिजल्ट अधिक खराब हुए हैं. अभिभावक और विद्यार्थी भी तभी सुधरेंगे.

    बिहार की यह बीमारी कम से कम पांच दशक पुरानी है. इसका इलाज कड़ाई से जरूरी है.

    परीक्षा में चोरी-चुहाड़ी रोकने के लिए नीतीश कुमार सरकार द्वारा उठाए कदम के लिए नीतीश कुमार कारण अभिनंदन.

    गत वर्ष के रिजल्ट से बिहार की बहुत बदनामी हुई थी...

    - कल्याण कुमार सिन्हा, नागपुर.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सार्थक बात। मेरा भी यही मानना है। धन्यवाद।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

The First Class

पहले क्लास का,किसी भी संस्थान में, बहुत महत्व होता है. पहले दिन छात्र बहुत ही उत्साहित रहते हैं. और उत्सुक भी. वे अपने नए संस्थान , नए कोर्स , नए टीचर , नयी किताब इन सबों के बारे में जितना जल्दी हो सके जानना चाहते हैं. फिजिक्स क्लासेज के पहले क्लास में छात्र  विख्यात फिजिक्स गुरु ई० एस० मिश्रा सर से रूबरू होते हैं. परिचय के बाद शिक्षण विधि की व्याख्या होती है. जो छात्र किसी कारणवश यह क्लास नहीं कर पाए  वे इस ब्लॉग की मदद से उसकी जानकारी हासिल कर सकते हैं. क्लास में ये लेकर आयें : 1. एक अच्छा गत्ते वाला नोट बुक ( रजिस्टर) : इस का उपयोग सब्जेक्ट का नोट बनाने के लिए होता है. यह एक अच्छे क्वालिटी का नोट बुक होना चाहिए. गत्ते वाला इसलिए होना चाहिए कि यह दो तीन साल तक सुरक्षित रह सकता है . क्लास आते या जाते वक्त यदि बारिस इत्यादि का सामना हो जाये तो यह सुरक्षित रहेगा . इस नोट बुक में सर के द्वारा,क्लास के दौरान,  दी गयी सारी  महत्वपूर्ण जानकारियां  संग्रहित होंगी.  परीक्षा से कुछ दिन पहले इन्हीं का रिवीजन आपके लिए आवश्यक ह...

Mishra सर ने कहा - फिजिक्स माध्यम का मोहताज नहीं

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और हमें गौरब है कि हम हिंदी में वे सारे काम कर सकते हैं जो इस मानव दुनिया में संभव है. तो क्या हम हिंदी माध्यम से भौतिकी यानी फिजिक्स का अध्ययन नहीं कर सकते? यह प्रश्न जब हमने Er S Mishra ,  जो भौतिकी के महागुरु कहलाते हैं तो वे मुस्कुराने लगे. कहने लगे विज्ञान भाषा का मोहताज़ नहीं है. यह तो समझने और समझाने की चीज है. आप किसी भी माध्यम से इसकी स्टडी कर सकते हैं. यह बात सही है कि उच्च शिक्षा में अनेक अच्छी पुस्तकें अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं. पर इंटर लेवल पर और ग्रेजुएशन लेवल पर तमाम अच्छे लेखकों की किताब हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है. आज अनेक छात्र तो हिंदी माध्यम से JEE और NEET देने लगे हैं और उसमे सफल भी होने लगे हैं. UPSC में तो हिंदी माध्यम का बोलबाला ही है. महज अज्ञानता के कारण हम अपनी भाषा को उपेक्षित कर रहे हैं. यद्यपि अच्छे शिक्षकों की कमी भी इसका एक कारण है. इसीलिए तो मैंने youtube पर एक चैनल शुरू किया है जिसमे मैं हिंदी माध्यम के  अपने क्लास का सीधा प्रसारण देता हूँ. कोई नही व्यक्ति उस चैनल पर जाकर इन क्लास को कर सकता है.इसका लिं...

Error Analysis

Significant Digits: चाहे किसी भी तरह का Measurement हो हमें न्यूमेरिकल वैल्यू प्राप्त करने के लिए एक scale का उपयोग करना पड़ता है. एक खास तरीके से हम स्केल को पढ़ते हैं, और जो Number मिलता है उसको हमलोग Reading या Measured Value के नाम से जानते हैं. इस Measured Value का आखिरी अंक (Digit) अनिश्चित (uncertain) होता है क्योंकि यह अनुमान पर आधारित होता है. अन्य सभी digit निश्चित (certain) होते हैं. इन दोनों तरह के digit को हम Significant Digit कहते हैं. इनकी संख्या अक्सर महत्वपूर्ण होती है और यह उपयोग किये गए Scale की Quality बताती है. किसी भी Measurement के लिए जितने अच्छे  Scale का उपयोग किया जायेगा Significant Digits की संख्या उतनी ही ज्यादा होगी. Counting Number of Significant Digits: सभी non zero अंक सिग्नीफिकेंट होते हैं.  ऐसे सभी जीरो जो दो नॉन जीरो के बीच आते हों वे सिग्नीफिकेंट होंगे.  अगर संख्या में दशमलव (decimal) का उपयोग किया गया हो तो आखिरी वाले जीरो सिग्नीफिकेंट होंगे अन्यथा नहीं होंगे.  पहले नॉन जीरो से पहले वाले जीरो सिग्नीफिकेंट नहीं होते हैं....

Followers